अरहर की खेती के लिए उर्वरक और कीटनाशक का सही इस्तेमाल, इन तरीकों से बढ़ाएं पैदावारी

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अरहर की पैदावार बढ़ाने के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान देना पड़ता है। अरहर की रोपाई करने के लिए सबसे पहले खेत की तैयारी पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। बारिश शुरू होने के साथ ही खेत को दो से तीन बार अच्छे से जुताई कर लेना चाहिए। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए।

नई दिल्ली। अरहर की खेती किसानों के लिए फायदेमंद होती है। इसकी खेती से किसानों को काफी फायदा होता है। दलहनी फसल के तौर पर इसकी खेती की जाती है। आम तौर पर खरीफ के सीजन में किसान इसकी खेती करते हैं। इसकी खेती से खेत की मिट्टी को भी फायदा होता है।

इसकी अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए कुछ चीजों पर खास ध्यान देना पड़ता है। अगर किसान सही तरीके से खाद, बीज और रोगों का प्रबंधन खेत में करें तो अच्छी पैदावार हासिल कर सकते हैं। इसकी खेती के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि इसकी अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी में इसकी खेती करें, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

अरहर की पैदावार बढ़ाने के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान देना पड़ता है। अरहर की रोपाई करने के लिए सबसे पहले खेत की तैयारी पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। बारिश शुरू होने के साथ ही खेत को दो से तीन बार अच्छे से जुताई कर लेना चाहिए।

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। उसके बाद फिर देशी हल से जुताई करनी चाहिए। इसके साथ ही बुवाई के समय खेत में पांच टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए और इसे खेत में अच्छे तरीके से मिलाना चाहिए। अरहर की खेती ऊपरी जमीन में की जाती है।

बुवाई और बीज दर

अरहर के अच्छे उत्पादन के लिए सही समय पर इसकी बुवाई करना जरूरी है। इसकी अच्छी उपज पानी के लिए किसानों को इसकी बुवाई मध्य जून से लेकर मध्य जुलाई तक कर देना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम बीज की दर से इसकी बुवाई करनी चाहिए। बुवाई से पहले रोग मुक्त करने और पौधौं की अच्छी बढ़वार के लिए बीजों को उपचार जरूर करना चाहिए। बीजों की बुवाई से पहले राइजोबियम कल्चर से बीजों को उपचारित करना लाभदायक होता है।

खाद और उन्नत किस्म

अरहर की अच्छी पैदावार के लिए खेत में खाद की उचित मात्रा पर भी विशेष ध्यान देना पड़ता है। खेत तैयार करते समय अंतिम जुताई के वक्त 12 किलोग्राम यूरिया, 100 किलोग्राम डीएप और 40 किलोग्राम पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालना चाहिए। अरहर की उन्नत किस्मों की बात करें तो बिरसा अरहर-1, बहार, लक्ष्मी, आईसीपीएल-87119, नरेंद्र अरहर-1, नरेंद्र अरहर-2, मालवीय-13, एनटीएल-2 जैसी किस्मों का उपयोग कर सकते हैं।

कीट और रोग नियंत्रण

अरहर की खेती में कई प्रकार के फली छेदक कीटों का आक्रमण होता है। इसके उपज में भारी कमी आती है। इसके नियंत्रण के लिए दो या तीन बार कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। पहला छिड़काव इंडोस्कार्ब 0।5 मिली प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर करें। फल निकलने की अवस्था में इसका छिड़काव करना चाहिए। दूसरा छिड़काव मोनो क्रोटोफॉस का करना चाहिए जो 15 दिनों के बाद किया जाता है। इसके अलावा अरहर में उकठा रोग का भी प्रकोप होता है। इसलिए रोग से ग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर फेंक देना चाहिए।

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