कशमकश भरी जिंदगी

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मेरा नाम वैशाली है। मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में रहने वाली एक लड़की हूं, मेरे पिता गांव के प्रधान हैं। हम घर में सिर्फ दो बहनें और माता-पिता ही रहते थे। मेरा परिवार बहुत ही मिलनसार और गांव में सबसे नामी परिवारों में जाना जाता था। इसी साल मैंने 12वीं फर्स्ट डिवीजन से पास किया था, और मैं आगे और पढ़ना चाहती थी, पर गांव में कोई कॉलेज नहीं होने के कारण पिताजी ने दूर जाकर पढ़ने की अनुमति नहीं दिया, उनका कहना था कि अब मुझे घर के काम सीखने चाहिए और अपनी छोटी बहन की पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए मैं बहुत शांत स्वभाव की लड़की थी और पिताजी से थोड़ा डरती भी थी इसलिए पिताजी की बात को टाल नहीं सके मैं उनसे एक बार भी अपने दिल की बात खुलकर नहीं बोल सकी कि मैं शहर जाकर पढ़ना चाहती हूं।

आज मुझे पापा के किसी दोस्त के बेटे शादी के लिए देखने आने वाले थे, मेरे पिताजी का तो मानो खुशी से प्यार ही नहीं टिक रहा था। वह सुबह से ही एक पैर पर खड़े सारी तैयारी करने में लगे थे, तभी दरवाजे पर एक सफेद रंग की कर आकर रूकती है। वैसे तो पिताजी के दोस्त एक सामान्य से हैं, पर उनका लड़का बाहर शहर में रहकर डॉक्टर की पढ़ाई कर रहा था। उसका यह आखरी साल चल रहा था, इसलिए उसके माता-पिता उसकी शादी करना चाह रहे थे। मैं दरी सेमी से छिपकर खिड़की से उनको गाड़ी से उतरकर घर में अंदर आता देख रही थी।

लड़का देखने में तो बहुत स्मार्ट था और गाड़ी से उतरते ही उसने बड़े आदर से मेरे पिताजी के पैर छुए उसको देखते ही मेरे पिताजी खुश हो गए और उसे गले से लगा लिया फिर सब भी एक साथ बैठकर बातचीत करने लगे मैं छिपकर उनकी सारी बातें सुन रही थी, तभी मेरी छोटी बहन मुझे लेने आती है। मैंने पहली बार साड़ी पहनी थी। हाथ में चाय की ट्रे लेकर मैं सबके सामने जाती हूं मुझे देखते ही लड़के के चेहरे पर एक अलग ही स्माइल आ गई थी।

जिसे देखकर मैं भी मन ही मन में खुश हो गई। सबको एक-एक कर चाय का कप दिया फिर खुद भी सोफे पर बैठ गई। फिर मुझे लड़के की मां और पिताजी बातें करने लगे फिर लड़के के पिताजी ने बोला तुम दोनों को भी अगर कुछ बात करनी हो तो अकेले में कर लो उसके बाद मेरी छोटी बहन हम दोनों को छत पर ले गई। उसने दो कुर्सियां लगाई, हम दोनों के बैठने के लिए और खुद नीचे चली गई। मैं अपनी नज़रें झुका कर चुपचाप बैठ गई तब उन्होंने बोला अरे डरो मत मैं कुछ इतना भयानक इंसान भी नहीं हूं। उनकी यह बात सुनकर मेरे चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, तब उन्होंने बोला मेरा नाम सुबोध है। आप अगर मुझसे कुछ पूछना चाहती हैं तो पूछ सकती है। मैंने नजरे झुका लिया और इशारे में ही बोला।

उसके बाद मेरी और सुबोध की थोड़ी बहुत बात—चीत हुई और फिर मेरी छोटी बहन वहां आई और मुझे कमरे में ले गई। सुबोध बाहर सबके साथ बैठ गए मैं और सुबोध ने शादी के लिए हां कर दिया था। हमारी सगाई उसी दिन हो गई उसके बाद ठीक 6 महीने बाद मेरी और सुबोध की शादी का दिन तय हो गया। मैं बहुत खुश थी, सगाई के दो-तीन दिन बाद ही सुबोध ने अपने भाई के हाथों मेरे लिए एक मोबाइल और कुछ गिफ्ट्स भेजे थे।

उसके बाद मेरी और सुबोध की लगभग रोज बातचीत होने लगी थी। मैं मन ही मन सुबोध जी को बहुत पसंद करने लगी थी। सुबह की बहुत शांत स्वभाव के थे, और मेरा बहुत ख्याल रखते थे। धीरे-धीरे 6 महीने कब बीत गया। मुझे पता ही नहीं चला, उसके बाद मेरी और सुबोध जी की शादी शादी हो गई। अगले दिन मेरी विदाई हुई मेरा ससुराल मेरे घर से काफी दूर था। पर मैं जैसे ही ससुराल में पहुंची वहां मेरे देवर और ससुराल वालों ने मेरा बहुत अच्छे से स्वागत किया।

सभी वहां मेरा बहुत ख्याल रखते थे, धीरे-धीरे शादी को एक महीने बीत गया। मैं सुबोध जी को और पसंद करने लगी थी तभी मेरे जीवन में अचानक से एक ऐसा भूचाल आता है। जिसके बारे में मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। उस भूचाल का नाम था, स्नेहा उसने मुझे कॉल करके बोला कि वह सुबोध की पत्नी है, और उसके और सुबोध की दो बच्चे भी यह सुनकर तो मानो मेरे पैरों तले जमीन ही खिसक गई, मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं क्या बोलूं मैं फोन रख दिया 2 दिन बाद दरवाजे की घंटी बजती है, और स्नेहा अपने दो बच्चों के साथ घर के दरवाजे पर खड़ी थी, जैसे ही मैंने दरवाजा खोल वह रो-रोकर मुझे मेरे साथ ससुर को सबको अपनी और सुबोध की शादी की बात बताने लगते हैं, और अपने साथ कुछ फोटोग्राफ सबूत भी दिखाती है, यह सब देखकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था।

मेरा बस चलता है तो मैं पूरी दुनिया को आग लगा देती मैं चुपचाप अपने कमरे में गई और अपने सारा सामान पैक करके अपने मायके चली आई। 3 महीने तक मैं अपने मायके में ही थी, अचानक एक दिन मेरे ससुर जी मेरे घर आए उन्होंने मेरे पिताजी से कहा कि अब जो होना था हो गया, आप वैशाली की विदाई मेरे छोटे बेटे अजय से कर दीजिए। आपकी भी एक छोटी बेटी है, आपको उसकी शादी करने में बहुत सारी समस्याएं आएंगी। हमारा समाज ऐसा है कि अगर बड़ी बेटी घर में बैठी होगी तो शायद आपकी छोटी बेटी की कहीं शादी ना हो, यह सब सुनकर मेरे पिताजी मेरी विदाई मेरे देवर के साथ करने को तैयार हो गए। वह देवर जिसे मैं हमेशा अपनी छोटा भाई के नजर से देखती थी, उम्र में मुझसे तकरीबन 3 साल छोटा है और अभी उसकी पढ़ाई ही चल रही थी।

मैं हमेशा उसे छोटे भाई की ममता भरी नजर से ही देखती थी, उसके साथ में वह रिश्ता कैसे रख सकती थी जो कभी मेरा उसके बड़े भाई के साथ था। पर मेरे लाख मना करने के बावजूद भी मेरी मां ने मेरे सर पर हाथ रख कसम खाकर मुझे अजय के साथ विदाई करने के लिए मजबूर कर लिया। मैं बहुत दु:खी थी पर माता-पिता और सामाजिक दबाव में आकर मैंने इस शादी के लिए हां कर दी थी।

उसके बाद मेरी और अयज की शादी हो गई उसके बाद अजय के परिवार वाले आए और मुझे विदा करा कर अपने घर ले गए, हालांकि कभी वह घर जो मेरा था दु​बारा से मेरा हो गया। मैं इस शादी और इस रिश्ते से खुश नहीं थी क्योंकि वहां पर हर रोज सुबह स्नेहा को देखना पड़ता है। मैं दिल से इस विवाह को इस शादी को स्वीकार ही नहीं कर पा रही हूं। मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा है मुझे क्या करना चाहिए क्या नहीं मुझे इस रिश्ते को आगे बढ़ना चाहिए या नहीं आप इस पर मुझे अपनी राय जरुर दें….

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