गंगा-यमुना के पानी में बढ़ रही जहर की मात्रा, जानिए इस कारण किन शहरों में घटा ऑक्सीजन

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लखनऊ। गा-यमुना भारत की दो सबसे महत्वपूर्ण नदियां में बढ़ते प्रदूषण के कारण इनकी जैव विविधता और पर्यावरणीय व्यवहार्यता को गंभीर रूप से खतरा पहुंचा रहा है। दोनों नदियों में नाइट्रेट और फास्फेट की मात्रा बढ़ने की वजह से ऑक्सीजन की मात्रा मानक से काफी कम हो गई है।

गंगा की तुलना में यमुना के हालात ज्यादा बत्तर

गंगा की तुलना में यमुना की हालत ज्यादा खराब है। इससे जलीय जीवों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ऑक्सीजन की कमी के कारण जलीय जीवों की मौत और नदी डेथ जोन बनने का खतरा भी बढ़ा है।

दोनों नदियों पोषक तत्व भार, यूट्रोफिकेशन के खतरे का पता लगाने के लिए पर्यावरण विज्ञान केंद्र की शोध छात्रा कृति वर्मा ने सुपरवाइजर डा. पवन कुमार झा के निर्देशन शोध शुरू किया। गंगा नदी के लिए कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी से तथा यमुना नदी के लिए आगरा, मथुरा और प्रयागराज में गर्मी के दिनों में 36 स्थानों से पानी के नमूने लिए गए।

यमुना में फास्फेट की मात्रा 115 गुना और गंगा में 26 गुना अधिक

अध्ययन में सामने आया कि यमुना में फास्फेट की मात्रा 115 गुना और गंगा में 26 गुना अधिक है। नाइट्रेट की मात्रा गंगा में मानक से कम रही पर यमुना में बढ़ी रही। गंगा में जहां यूट्रोफिक स्थितियां पाई गई तो यमुना में सुपर यूट्रोफिक स्थितियां बन गई हैं।

नदियों को बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा एसटीपी लगाने होंगे

पर्यावरण विज्ञान केंद्र के समन्वयक डा. उमेश कुमार सिंह बताते हैं बिना शोधन के सीवर नदियों में बहाने के कारण नाइट्रेट और फास्फेट की मात्रा बढ़ी है, जो नदी के इको सिस्टम के लिए खतरनाक है। ऐसे में नदियों को बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा एसटीपी लगाने होंगे।

अध्ययन निष्कर्ष के अनुसार गंगा-यमुना के पानी में घुलित आक्सीजन की मात्रा छह मिलीग्राम प्रति लीटर से कम नहीं होनी चाहिये पर यह गंगा में 3.6 से 5.2 और यमुना में 3.7 से 4.7 मिलीग्राम प्रति लीटर ही मिली है। शैवाल वृद्धि के लिए जिम्मेदार फास्फेट की मात्रा अधिकतम 0.01 मिलीग्राम (एमजी) प्रति लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए पर यह गंगा में यह 0.02 से लेकर 0.26 तथा यमुना में 0.55 से लेकर 1.15 एमजी है। वहीं नाइट्रेट की मात्रा 45 एमजी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए । गंगा में यह 13.6 से 29.8 एमजी और यमुना में 30.68 से 61.29 एमजी प्रति लीटर पाई गई है।

इनके आवरण की वजह से पानी में आक्सीजन नहीं घुल पाती है और पानी के अंदर धूप रूक जाती है। इससे पानी के अंदर के पौधे नहीं पनप पाते हैं। यह पौधे मछलियों के छुपने और भोजन का एक स्रोत भी है।

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