आचमन एक महत्वपूर्ण और पवित्र अनुष्ठान है जिसे हिंदू पूजा और धार्मिक गतिविधियों में अपनाया जाता है। आचमन का मुख्य उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करना है ताकि व्यक्ति शुद्ध और पवित्र मन से पूजा कर सके। यह कर्मकांड पूजा की शुरुआत में किया जाता है।
आचमन का महत्व:
- शुद्धि: आचमन के द्वारा शरीर और मन को शुद्ध किया जाता है। इसे करने से व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध हो जाता है, जिससे पूजा में ध्यान लगाना आसान हो जाता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: आचमन करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे पूजा की प्रभावशीलता बढ़ती है।
- ध्यान और संयम: आचमन के दौरान मंत्रोच्चारण और जल ग्रहण करने से ध्यान और संयम में वृद्धि होती है, जो पूजा के लिए आवश्यक है।
- संस्कार: यह एक धार्मिक संस्कार है जो प्राचीन काल से ही चला आ रहा है और धर्म के प्रति आस्था और श्रद्धा को बढ़ाता है।
आचमन का सही तरीका:
- स्वच्छता: सबसे पहले, अपने हाथ और मुंह को साफ कर लें।
- जल ग्रहण: एक साफ बर्तन में पानी लें।
- मंत्रोच्चारण: आचमन करते समय निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें:
- “ॐ केशवाय नमः”: दाहिने हाथ की अंजुली में थोड़ा जल लेकर उसे अपने मुख में डालें और निगल लें।
- “ॐ नारायणाय नमः”: पुनः थोड़ा जल लेकर उसी प्रकार ग्रहण करें।
- “ॐ माधवाय नमः”: एक बार फिर से जल लेकर उसी तरह से ग्रहण करें।
- आचमन पूरा करना: अब अपने दाहिने हाथ की अंगुलियों से जल लेकर अपने माथे पर स्पर्श करें।
इस प्रकार, आचमन करके आप अपनी पूजा को शुद्ध और प्रभावी बना सकते हैं।
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