कुछ दिन पहले कोरोना की कोविशील्ड वैक्सीन के साइड इफैक्ट्स सामने आने के बाद लोगों में दहशत पैदा हो गई थी। खुद कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्रेजेनेका ने साइड इफैक्ट्स को स्वीकार कर अपनी वैक्सीन को दुनियाभर के बाजार से वापस लेने का फैसला कर लिया था और उस दौरान कोवैक्सीन लगवाने वाले खुद को खुशकिस्मत मान रहे थे।
नई दिल्ली। कुछ दिन पहले कोरोना की कोविशील्ड वैक्सीन के साइड इफैक्ट्स सामने आने के बाद लोगों में दहशत पैदा हो गई थी। खुद कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्रेजेनेका ने साइड इफैक्ट्स को स्वीकार कर अपनी वैक्सीन को दुनियाभर के बाजार से वापस लेने का फैसला कर लिया था और उस दौरान कोवैक्सीन लगवाने वाले खुद को खुशकिस्मत मान रहे थे। लेकिन अचानक बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की रिसर्च ने कोवैक्सीन लगवाने वालों की धड़कन बढ़ा दी, हालांकि हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो कोवैक्सीन एक सेफ वैक्सीन है। इसका सबूत सिर्फ ये वैक्सीन ही नहीं बल्कि भारत में दशकों से लगाई जा रहीं अन्य वैक्सीन भी हैं।
क्यों कोवैक्सीन लगवाने वालों को घबराने की जरूरत नहीं
कोवैक्सीन सुरक्षित वैक्सीन क्यों है? क्यों कोवैक्सीन लगवाने वालों को घबराने की जरूरत नहीं है? आइए ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) नई दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉ. महेश चंद्र मिश्र और जाने माने वायरोलॉजिस्ट और डॉ. अंबेडकर सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च नई दिल्ली के डायरेक्टर प्रोफेसर सुनीत के सिंह से जानते हैं इन सवालों का जवाब..
कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों ही वैक्सीन कोरोना के खिलाफ कारगर
डॉ. एमसी मिश्र कहते हैं कि कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों ही वैक्सीन कोरोना के खिलाफ कारगर रही हैं, फिर भी दोनों के काम करने की तकनीक और इन्हें बनाने में इस्तेमाल की गई तकनीक दोनों में अंतर है। कोविशील्ड जिस तकनीक से बनी है, यह नया टर्म है, जबकि कोवैक्सीन जिस तकनीक से बनी है भारत में उस तकनीक की वैक्सीन पहले से राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में चल रही हैं और उनके जबर्दस्त फायदे देखे ही जा रहे हैं। इनके साइड इफैक्ट् भी ऐसे नहीं देखे गए हैं, कि घबराया जाए।
कोवैक्सीन जिस इनएक्टिवेटेड या मरे हुए पैथोजन के इस्तेमाल से बनी
डॉ. सुनीत सिंह कहते हैं कि कोवैक्सीन जिस इनएक्टिवेटेड या मरे हुए पैथोजन के इस्तेमाल से बनी है, उससे भारत के टीकाकरण कार्यक्रम में चल रहीं कई वैक्सीन बनी हैं। इन सभी वैक्सीनों के कोई गंभीर साइड इफैक्ट्स नहीं देखे गए हैं। एक बात समझने की है कि जब मरे हुए पैथोजन को कई क्लीनिकल प्रोसेस के बाद शरीर में पहुंचाया जाता है तो इसका रेप्लिकेशन नहीं होता है। इसके साथ ही इसके एंटीजन शरीर में एंटीबॉडीज का निर्माण करने लगते हैं और बीमारी की सीवियरिटी के खिलाफ मजबूत सुरक्षा दीवार बन जाती है।
वैक्सीन की वजह से नहीं हुआ है साइड इफैक्ट्स
इसके अलावा अगर साइड इफैक्ट्स की बात करें तो किसी भी वैक्सीन के साइड इफैक्ट्स सिर्फ वैक्सीन पर ही नहीं बल्कि मल्टीपल फैक्टर्स पर निर्भर करते हैं। जैसे कोई व्यक्ति अगर कोमोरबिड है, किसी को वैक्सीन लेने के बाद कितनी बार सार्स कोवी टू का संक्रमण हुआ है तो उनमें वैक्सीन का इफैक्ट अलग होगा। ऐसे में सिर्फ ये कहना कि ये वैक्सीन की वजह से हुआ है, इसलिए भी सही नहीं है क्योंकि भारत के टीकाकरण में चल रही वैक्सीनों की वजह से ही यहां लाइफ एक्सपेक्टेंसी बढ़ी है।
कोवैक्सीन की तरह भारत में ये हैं वैक्सीन
ये वैक्सीन पूरी तरह इनएक्टिवेटेड या किल्ड वायरस से बनी हैं। इसमें संक्रमण करने वाले मृत वायरस कई कैमिकल और थर्मल प्रोसेस के बाद वैक्सीन के माध्यम से शरीर में पहुंचाया जाता है और फिर शरीर में उस बीमारी के खिलाफ एंटीबॉडीज बनती हैं। ऐसी कई वैक्सीन भारत में हैं.. जैसे
- टायफॉइड वैक्सीन
- इन्फ्लूएंजा वैक्सीन
- साक पोलियो वैक्सीन
- हेपेटाइटिस ए वैक्सीन
डॉ. सुनीत कहते हैं कि इसके अलावा कुछ ऐसी वैक्सीन भी हैं, जिनमें बीमारी के बैक्टीरिया को जेनेटिक मेनिपुलेशन से कमजोर कर दिया जाता है। ऐसी भी कई वैक्सीन भारत में हैं, जिनमें से पोलियो की ओरल वैक्सीन बेहद कारगर है। भारत से पोलियो उन्मूलन में इसका जबर्दस्त योगदान है। इसके अलावा मीजल्स, मम्स, रुबेला और वेरिसेला की एमआरवी वैक्सीन, रोटावायरस वैक्सीन आदि भी ऐसी ही वैक्सीन हैं।