कामाख्या देवी का रहस्य: गुवाहाटी के नीलांचल पर्वत पर स्थित है। माता कामाख्या देवी का मंदिर या मंदिर तीन महाशक्तिपीठों में से एक माना जाता है। माता कामाख्या का मंदिर किसी चमत्कारी मंदिर से कम नहीं है। इस मंदिर को मनोकामना पूर्ति का मंदिर भी कहा जाता है, हर साल भक्त यहां दूर-दूर से अपनी इच्छाओं को लेकर माता के समक्ष आते हैं। उनकी मान्यता है की माता उनके सभी कामनाओं को पूरा करेंगे।
तांत्रिक गढ़
मंदिर की ऊर्जा बहुत सकारात्मक और शक्तिशाली है। दूर-दूर से लोग यहां पर ध्यान करने के लिए आते हैं। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से है। पर इस मंदिर की ऊर्जा की वजह से इस मंदिर की को महाशक्ति पीठ माना जाता है। सारे शक्तिपीठों में मां कामाख्या को तंत्र विद्या की दुनिया में एक अलग स्थान दिया जाता है।
कामाख्या के मंदिर को तंत्र विद्या का गढ़ माना गया है। यहां के अघोरी और साधक सालों साल इस स्थान पर तंत्र विद्या का अभ्यास करते हैं। मान्यता यह भी है कि इस स्थान पर गए बिना कोई भी तांत्रिक की शक्तियां सिद्ध नहीं हो सकती है। यहां के साधकों में बहुत शक्ति होती है पर वह अपने शक्ति का प्रयोग बहुत सोच समझकर करते हैं।
अंबुबाची मेला
कामाख्या मंदिर का सबसे बड़ा त्यौहार है। अंबुबाची मेला जो हर साल जून महीने में मनाया जाता है। मेले के दौरान कामाख्या मंदिर तीन दिनों तक बंद रहता है मान्यता है।की माता इन दिनों अपने मासिक धर्म से गुजरती हैं। चौथे दिन जब मंदिर खुलता है। तब बलि चढ़ा कर माता की विशेष पूजा की जाती है। इसके बाद प्रसाद के रूप में माता का अंग वस्त्र सिंदूर आदि भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
मंदिर की उत्पत्ति तथा इसका इतिहास
माता सती के मृत्यु के बाद जब भगवान शिव उनके शरीर को लेकर वीरभद्र रूप में तांडव कर रहे थे। तब विष्णु जी ने माता सती के अंगों को 51 टुकड़ों में काट दिया, भगवान शिव को शांत करने के लिए माता सती के यह अंक के टुकड़े जिन-जिन स्थानों पर भी गिरे वहां पर शक्तिपीठों का निर्माण हुआ कामाख्या देवी मंदिर में माता सती की योनि गिरी थी।
जिसके कारण यहां पर माता कामाख्या का शक्तिपीठ है। जहां कामाख्या देवी निवास करते हैं। इस मंदिर का निर्माण कोच राजा नर नारायण ने 1565 में करवाया था। और 1572 में काला पहाड़ ने इसे नष्ट कर दिया था। कोच हो के राजा जिला राय ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।
पुरुषों को नहीं है अनुमति
पुरुषों को इन स्थानों पर प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती है। क्योंकि उन्हें देवी के समक्ष पुरुष शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
योनि की पूजा
कामाख्या देवी के मंदिर में किसी मूर्ति की नहीं बल्कि माता के योनि की पूजा होती है। मान्यता है। कि योनि से संतान का जन्म होता है। तो माता सती के योनि से तो संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है। इसीलिए इस मंदिर को मनोकामना पूर्ति की मंदिर कहा जाता है।
प्रतिदिन बाली
देवी कामाख्या को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन बलि दी जाती है। कामाख्या मंदिर में मादा जानवरों की बाली नहीं दी जाती है। लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए माता को बलि चढ़ाते हैं।
सदाशिव भी विराजमान
मां कामाख्या का मंदिर शैलदीप जो तंत्र का सबसे सिद्ध शक्तिपीठ है। इस टापू को मध्यांचल पर्वत कहते हैं। यहीं पर साधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने बाण से आहत कर दिया था। जिसके कारण क्रोध में आकर सदा शिव ने समाधि से जाकर कामदेव को श्राप देकर भस्म कर दिया था।
भैरव दर्शन अनिवार्य
प्रत्येक शक्तिपीठ का एक अलग भैरव मंदिर होता है। यहां पर उमानंद भैरव जी है। माता कामाख्या के दर्शन के बाद उमानंद भैरव का दर्शन अनिवार्य है। इसके पश्चात ही दर्शन को पूरा माना जाता है। यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में द्वीप के शीर्ष पर स्थित है।
मंदिर का रहस्य
मान्यता है कि जून के महीने में जब कामाख्या देवी अपने मासिक धर्म से होती हैं। इस समय यहां पर स्थित ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है।