UP By-Election News: देश के सात राज्यों की 13 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है, जो लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक नतीजे न मिलने से चिंतित है। 13 में से सिर्फ 2 सीटें जीतकर बीजेपी खुद को तसल्ली दे रही है कि उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टी का पलड़ा भारी है। लेकिन हकीकत में सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। जहां वो खुद सत्ता में हैं।
इन सीटों पर उपचुनाव हुए थे
उत्तर प्रदेश के फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवां, मीरापुर, मिल्कीपुर, कराहल, कटेहरी और कुंदरकी के विधायक इस बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन गए, इन नौ रिक्त सीटों पर उपचुनाव हुए। सीसामऊ से सपा विधायक इरफान सोलंकी की सदस्यता समाप्त होने के कारण इस सीट पर भी उपचुनाव हुआ।
लोकसभा में सपा का अच्छा प्रदर्शन
इन सीटों पर अभी उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई है। लेकिन मुख्य विपक्षी दल सपा ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। बीजेपी भी जीत के लिए रणनीति बना रही है। लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन करने से सपा उपचुनाव को लेकर आश्वस्त है। लेकिन इष्टतम प्रदर्शन बनाए रखना भी एक चुनौती हो सकती है।
बीजेपी के रणनीतिकार चिंतित हैं
बीजेपी के पास इस उपचुनाव के जरिए लोकसभा की धारणा को तोड़ने और कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ाने का मौका है। हालांकि इन सीटों का समीकरण बीजेपी के रणनीतिकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है। जिसमें सपा की जो पांच सीटें खाली हुई हैं, उनमें सपा का ही दबदबा रहने की संभावना है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव मानपुरी की करहल सीट से विधायक थे। यह सीट सपा का गढ़ मानी जाती है। जियाउर्रहमान बर्क मुरादाबाद की कुंदरकी सीट से विधायक थे। अब वह सांसद हैं तो मुस्लिम बहुल सीट से सपा को हटाना मुश्किल है।
यहां एसपी के लिए मुसीबत है
1991 में ही बीजेपी ने अंबेडकर नगर की कठेरी सीट से जीत हासिल की। यहां पांच बार बसपा और दो बार सपा ने जीत हासिल की है। इलाके के कद्दावर नेता और दो बार के विजेता लालजी वर्मा अब सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीत गए हैं। बीजेपी को यहां अपना प्रभाव भुनाने के लिए काफी पसीना बहाना पड़ेगा। फैजाबाद लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर सबकी निगाहें होंगी।
बीजेपी को यहां अपनी ताकत दिखाने की जरूरत है
अयोध्या की धरती पर बीजेपी को हराने वाले अवधेश प्रसाद की इस सीट पर बीजेपी को अपनी ताकत दिखानी होगी। कानपुर की सेसामा सीट की बात करें तो यहां सपा के इरफान सोलंकी तीन बार विधायक रहे। 2017 के मुकाबले 2022 में सपा की जीत का अंतर भी बढ़ गया। इस सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी भी है।
पांच सीटें बचाने की चुनौती
भाजपा को यहां अतिरिक्त सीटें मिलने की संभावना अब सीमित लग रही है, लेकिन उसके सामने अपनी पांच गढ़ सीटों को बचाने की चुनौती जरूर है। इसमें प्रयागराज की फूलपुर, अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद सीट पर बीजेपी के लिए लड़ाई थोड़ी आसान होगी। लेकिन मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट इतनी आसान नहीं है।
बीजेपी और निषाद पार्टी का समीकरण
पिछली बार जब इस सीट से रालोद के चंदन चौहान जीते थे तो रालोद-सपा का गठबंधन था। इस सीट पर सपनो की भी अच्छी पकड़ रही है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी मुजफ्फरनगर सीट भी हार गई। ऐसे में ये एक चुनौती है। इसी तरह मिर्ज़ापुर की मझवां सीट पर भी निषाद पार्टी ने जीत हासिल की। यहां बीजेपी और निषाद पार्टी को सामाजिक समीकरण बनाने होंगे।
विधानसभा चुनाव के लिए उपचुनाव अहम हैं
बीजेपी के प्रदेश पदाधिकारी का कहना है कि चुनाव होने में अभी वक्त है। पार्टी के पास चुनाव के जरिए जातीय समीकरण को दुरुस्त करने का मौका है। साथ ही, असंतुष्ट और निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को वापस एक साथ लाने का भी समय आ गया है। हालांकि, उनका मानना है कि इन बैठकों के नतीजों से भले ही योगी सरकार की सेहत पर कोई असर न पड़े, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार करने में मदद जरूर मिलेगी।