नेमप्लेट विवाद: एनडीए गठबंधन में आपस में भिडंत, जयंत चौधरी बोले क्या कुर्ते पर भी नाम लिखवाएं?

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सियासत इन दिनों हर दिन नया रंग दिखा रही है। जहां एक तरफ यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और सीएम योगी के बीच तनातनी की चर्चाएं थीं, वहीं दूसरी तरफ नेमप्लेट विवाद को लेकर यूपी में अलग ही बवाल मचा हुआ है। कांवड़ यात्रा को लेकर यूपी में चल रहे नेमप्लेट विवाद को लेकर अब देश की सियासत गरमाती जा रही है। जहां विपक्ष ही नहीं अब एनडीए के सहयोगी दल भी यूपी सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। कई अन्य सहयोगी दलों के बाद अब केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी ने नेमप्लेट विवाद को लेकर यूपी सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताई है, जहां चौधरी ने कहा क्या कुर्ते पर भी नाम लिखवाएं?

जयंत चौधरी ने किया विरोध

केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी ने योगी सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि कांवड़ यात्रियों की सेवा तो सभी करते हैं, न ही कांवड़ ले जाने वाला व्यक्ति किसी को पहचानता है. कांवड़ यात्री जाति और धर्म को पहचान कर सेवा नहीं लेते हैं। इस मुद्दे को धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। भाजपा ने बड़े पैमाने पर समझकर फैसला नहीं लिया। उन्होंने बस फैसला ले लिया, इसलिए अब सरकार उन पर निर्भर है। सरकार के पास फैसला वापस लेने का अभी भी समय है। अब उन्होंने अपना नाम कहां लिखवाया है। क्या उन्हें अपने कुर्ते पर भी अपना नाम लिखवाना चाहिए ताकि नाम देखकर आप हाथ मलें?

भाजपा के फैसले पर सवाल

जयंत चौधरी ने योगी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि भाजपा ने सोच समझकर यह फैसला नहीं लिया है। आपको बता दें कि इतने विरोध के बाद यूपी की योगी सरकार ने भी सरकार के इस फैसले को अंतिम रूप दे दिया है। लोजपा के बाद अब राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए हैं।

जानिए कहां से शुरू हुआ मामला

आइए अब इस मुद्दे के बारे में विस्तार से बताते हैं जिसने यूपी और पूरे देश को गरमा दिया है। सावन का पवित्र महीना शुरू होने से पहले कांवड़ियों का जत्था बोल बम के नारे के साथ निकल पड़ा है और इस बार यूपी और उत्तराखंड सरकार के आदेश का असर पूरे कांवड़ मार्ग पर साफ दिखाई दे रहा है। इसलिए रास्ते में जगह-जगह दुकानों पर दुकानदारों के नाम की पर्चियां लगाई गई हैं। इन नाम पर्चियों पर हिंदू-मुस्लिम राजनीति गरमा गई है। कोई इस फैसले को संविधान के खिलाफ बता रहा है तो कोई इसे समाज में नफरत फैलाने की साजिश का हिस्सा बता रहा है।

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