पहली बार केशव प्रसाद मौर्य इतने आगे निकल गए हैं…क्या वे अपने मंसूबों में कामयाब होंगे?

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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के बाद से ही उत्तर प्रदेश भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। भाजपा कार्यसमिति में संगठन को सरकार से बड़ा बताने वाले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अब खुलकर मैदान में उतर आए हैं। कैबिनेट बैठक के बाद कुंभ को लेकर प्रयागराज में हुई बैठक से भी केशव ने दूरी बनाए रखी और अब अपनी सरकार से सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं। केशव प्रसाद मौर्य ने अपनी ही योगी सरकार को पत्र लिखकर पूछा है कि संविदा और आउटसोर्सिंग के जरिए की गई भर्तियों में आरक्षण के नियमों का कितना पालन किया गया है?

सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच मतभेद की खबरें कई बार आई हैं, लेकिन पिछले सात सालों में पहली बार केशव ने फ्रंटफुट पर आकर मोर्चा खोला है। 15 जुलाई को केशव मौर्य ने नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग (डीओएपी) के अपर मुख्य सचिव देवेश चतुर्वेदी को सरकारी विभागों में संविदा और आउटसोर्सिंग के जरिए की गई नियुक्तियों को लेकर पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा कि विधान परिषद के प्रश्नों की ब्रीफिंग के दौरान कार्मिक विभाग के अधिकारियों से आउटसोर्सिंग और संविदा पर काम करने वाले कुल अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या के बारे में जानकारी मांगी गई थी।

योगी सरकार ने कितनी भर्तियां कीं?

केशव ने पूछा था कि संविदा भर्ती में आरक्षण नियमों का कितना पालन किया गया। इसके अलावा उन्होंने 69000 सहायक अध्यापक भर्ती में आरक्षण की विसंगति के बाद चयनित 6800 आरक्षण श्रेणी के अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने के मुद्दे का जिक्र किया है। उनका मानना ​​है कि शिक्षक भर्ती में आरक्षण का यह मुद्दा लंबे समय से अटका हुआ है, जिसके कारण ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थी आंदोलन कर रहे हैं। ऐसे में इसका पालन होना चाहिए।

यूपी में 2017 में भाजपा सरकार बनने के बाद 2023 तक सरकारी विभागों में संविदा के जरिए 56 हजार 491 और आउटसोर्सिंग के जरिए 2 लाख 75 हजार 497 भर्तियां की जा चुकी हैं। इसके अलावा आउटसोर्सिंग के जरिए 1 लाख 7 हजार 936 कर्मचारी विभिन्न निकायों में रखे गए हैं। केशव प्रसाद ने 16 अगस्त 2023 को नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग को पत्र लिखकर संविदा एवं आउटसोर्सिंग नियुक्तियों में आरक्षण नियमों का पालन न किए जाने पर आपत्ति भी जताई थी। अब उन्होंने इस संबंध में फिर से जानकारी मांगी है।

नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग सीएम के पास

पत्र लिखने से एक दिन पहले 14 जुलाई को प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि सरकार से बड़ा संगठन है। अगले ही दिन उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि सरकार से बड़ा संगठन है। इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के बाद से केशव प्रसाद मौर्य कैबिनेट की बैठकों में भी शामिल नहीं हो रहे हैं। इसी कड़ी में कुंभ की तैयारियों को लेकर सीएम योगी की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक में भी केशव प्रसाद शामिल नहीं हुए थे, जबकि फूलपुर सांसद, मंत्री नंद गोपाल नंदी समेत प्रयागराज के सभी विधायक शामिल हुए थे।

केशव प्रसाद मौर्य ने जिस विभाग से भर्तियों में आरक्षण के अनुपालन की जानकारी मांगी है, उसका जिम्मा सीएम योगी आदित्यनाथ के पास है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो केशव प्रसाद मौर्य ने अब खुलकर मोर्चा खोल दिया है, जिस तरह से उन्होंने जानकारी मांगी है, उससे इसका राजनीतिक मकसद भी समझा जा सकता है। नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग सीएम के पास है। ऐसे में बिना उनकी मंजूरी के न तो कोई शासनादेश लागू हो सकता है और न ही कोई सूचना जारी हो सकती है। केशव प्रसाद मौर्य ने संविदा भर्ती में ओबीसी और दलितों को आरक्षण का मुद्दा उठाकर एक बड़ी राजनीतिक चाल चली है, जिस पर बीजेपी के सहयोगी दल भी सवाल उठा रहे हैं।

आरक्षण के मुद्दे पर विपक्ष के सुर में सुर मिलाए

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी समुदाय से आते हैं और बीजेपी का ओबीसी चेहरा हैं। लोकसभा चुनाव में जिस तरह से ओबीसी वोटर बिखरे हैं, उससे बीजेपी के लिए चुनौती पहले से बढ़ गई है। इसीलिए केशव मौर्य अब इस मुद्दे को उठाकर अपनी ओबीसी पहचान को बनाए रखने का इरादा रखते हैं, लेकिन उनके इस कदम से टकराव और बढ़ेगा। आरक्षण के मुद्दे पर योगी सरकार पहले से ही घिरी हुई है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा है, जिसे सहयोगी दल लगातार उठा रहे हैं। अब केशव मौर्य ने इस मुद्दे पर एक पत्र लिखा है और विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करके अपनी ही सरकार को विपक्ष के निशाने पर ला दिया है।

2017 में यूपी में बीजेपी 15 साल बाद सत्ता में लौटी थी, उस समय प्रदेश अध्यक्ष की कमान केशव प्रसाद मौर्य के हाथों में थी। ऐसे में केशव प्रसाद खुद को सीएम पद के दावेदार के तौर पर देख रहे थे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने सत्ता की कमान योगी आदित्यनाथ को सौंप दी और केशव को डिप्टी सीएम पद से संतोष करना पड़ा। तब से दोनों नेताओं के बीच सियासी टकराव चल रहा है, लेकिन पहली बार केशव प्रसाद मौर्य ने खुलकर मोर्चा खोल दिया है। ऐसे में देखना यह है कि केशव पीछे हटेंगे या फिर इसी तरह फ्रंटफुट पर खड़े नजर आएंगे?

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