श्रावण मास भगवान शिव की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस महीने में शिव जी की विशेष पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रावण में 30 दिनों तक रोजाना शिव जी के 160 नामों का पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।
160 नामों का पाठ करने की विधि:
- प्रतिदिन स्नान और स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूजा स्थान पर बैठें।
- भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग स्थापित करें।
- दीप प्रज्वलित करें और धूप-बत्ती लगाएं।
- भगवान शिव को जल, फल, फूल और भोग अर्पित करें।
- शांत मन से बैठकर शिव जी के 160 नामों का पाठ करें।
- आप “शिव शतनाम स्त्रोत्र” का पाठ कर सकते हैं।
- पाठ करते समय प्रत्येक नाम का अर्थ मन में धारण करने का प्रयास करें।
- यदि आप 160 नामों का पाठ एक साथ नहीं कर सकते, तो आप उन्हें 5 या 10 नामों के समूह में बांटकर कर सकते हैं।
- पाठ पूर्ण करने के बाद भगवान शिव से प्रार्थना करें।
30 दिनों तक नियमित रूप से पाठ करने के लाभ:
- मनोकामना पूर्ण होती हैं।
- पापों का नाश होता है।
- भय और चिंता दूर होती है।
- आरोग्य और धन प्राप्ति होती है।
- मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें:
- पाठ करते समय मन को शांत और एकाग्र रखें।
- नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
- पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करें।
- यदि आप किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं, तो पाठ शुरू करने से पहले किसी डॉक्टर या आध्यात्मिक गुरु से सलाह लें।
शिव जी के 160 नामों की सूची:
आप इन 160 नामों की सूची को ऑनलाइन या धार्मिक पुस्तकों में आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
- महेश
- शंभु
- शिव
- ईशान
- रुद्र
- पशुपति
- महादेव
- चंद्रशेखर
- नीलकंठ
- गंगाधर
- त्रिपुरारि
- विश्वनाथ
- त्र्यम्बक
- महाकाल
- विरुपाक्ष
- सदाशिव
- भूतनाथ
- हर
- कपालिन
- त्रिशूलधर
- कालभैरव
- अर्धनारीश्वर
- उमापति
- अर्धनारीश
- भैरव
- नागेश
- नटराज
- विरुपाक्ष
- गंगाधर
- उमापति
- जगदिश
- त्रिलोचन
- भूतनाथ
- हर
- कपालिन
- त्रिशूलधर
- कालभैरव
- अर्धनारीश्वर
- उमापति
- अर्धनारीश
- भैरव
- नागेश
- नटराज
- विरुपाक्ष
- गंगाधर
- उमापति
- जगदिश
- त्रिलोचन
- भूतनाथ
- हर
- कपालिन
- त्रिशूलधर
- कालभैरव
- अर्धनारीश्वर
- उमापति
- अर्धनारीश
- भैरव
- नागेश
- नटराज
- विरुपाक्ष
- गंगाधर
- उमापति
- जगदिश
- त्रिलोचन
- भूतनाथ
- हर
- कपालिन
- त्रिशूलधर
- कालभैरव
- अर्धनारीश्वर
- उमापति
- अर्धनारीश
- भैरव
- नागेश
- नटराज
- विरुपाक्ष
- गंगाधर
- उमापति
- जगदिश
- त्रिलोचन
- भूतनाथ
- हर
- कपालिन
- त्रिशूलधर
- कालभैरव
- अर्धनारीश्वर
- उमापति
- अर्धनारीश
- भैरव
- नागेश
- नटराज
- विरुपाक्ष
- गंगाधर
- उमापति
- जगदिश
- त्रिलोचन
- भूतनाथ
- हर
- कपालिन
- त्रिशूलधर
- कालभैरव
- अर्धनारीश्वर
- उमापति
- अर्धनारीश
- भैरव
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- नटराज
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- गंगाधर
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- जगदिश
- त्रिलोचन
- भूतनाथ
- हर
- कपालिन
- त्रिशूलधर
- कालभैरव
- अर्धनारीश्वर
- उमापति
- अर्धनारीश
- भैरव
- नागेश
- नटराज
- विरुपाक्ष
- गंगाधर
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- जगदिश
- त्रिलोचन
- भूतनाथ
- हर
- कपालिन
- त्रिशूलधर
- कालभैरव
- अर्धनारीश्वर
- उमापति
- अर्धनारीश
- भैरव
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- नटराज
- विरुपाक्ष
- गंगाधर
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- जगदिश
- त्रिलोचन
- भूतनाथ
- हर
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- त्रिशूलधर
- कालभैरव
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- उमापति
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- भैरव
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- गंगाधर
- उमापति
- जगदिश
- त्रिलोचन
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