हे भगवान! AAP ने प्रदूषण कम करने के लिए सिर्फ़ 30% पैसे खर्च किए, बाकी पैसे कहां गए?

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दिल्ली में प्रदूषण: दिल्ली देश की राष्ट्रीय राजधानी है और यहां दुनियाभर से लोग आकर रहते हैं और आते-जाते भी रहते हैं। यहां वायु प्रदूषण को लेकर कई बार चर्चाएं भी होती रहती हैं। लेकिन एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के लिए केंद्र सरकार से मिले पैसे का सिर्फ़ 29.5% ही इस्तेमाल किया है। यह पैसा 2019-20 से 2023-24 के बीच का है। यह रिपोर्ट सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल साइंस एंड (CSE) नाम की संस्था ने जारी की है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम

दरअसल, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले पांच सालों में NCAP को चलाने के तरीके पर सवाल उठे हैं। “राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम: सुधार के लिए एजेंडा” शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है, लेकिन एनसीएपी के तहत अधिकांश धनराशि का उपयोग धूल नियंत्रण उपायों में किया गया है, न कि ईंधन जलाने से उत्पन्न पीएम 2.5 को कम करने में, जो कहीं अधिक हानिकारक है।

सड़क की धूल कम करने पर 64% खर्च

एनसीएपी कार्यक्रम 10 जनवरी 2019 को शुरू किया गया था। इसका लक्ष्य 2025-26 तक दिल्ली सहित 131 प्रदूषित शहरों में हवा में पाए जाने वाले पीएम 10 और पीएम 2.5 के स्तर को 40% तक कम करना था। रिपोर्ट के अनुसार, 131 शहरों के लिए कुल 10,566 करोड़ रुपये जारी किए गए। इस राशि का 64% हिस्सा सड़क की धूल कम करने पर खर्च किया गया, जबकि जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए बहुत कम पैसा दिया गया।

प्रदूषण कम करने पर बहुत कम खर्च

सीएसई (पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र) की प्रमुख सुनीता नारायण ने कहा कि एनसीएपी कार्यक्रम के लक्ष्य बहुत अच्छे हैं, लेकिन कार्यक्रम के तहत ज़्यादातर ध्यान और पैसा धूल को कम करने पर खर्च किया जा रहा है, न कि उन चीज़ों को कम करने पर जो हवा को प्रदूषित करती हैं, जैसे कि फ़ैक्टरियाँ और वाहन। उन्होंने कहा कि एनसीएपी और 15वें वित्त आयोग के तहत खर्च की गई 64% राशि सड़क की धूल को कम करने पर खर्च की गई है। वहीं, जलने से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने पर बहुत कम खर्च किया गया है – फ़ैक्टरियों से होने वाले प्रदूषण को कम करने पर सिर्फ़ 0.6%, वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने पर 12.6% और जलने वाली चीज़ों से होने वाले प्रदूषण को कम करने पर 14.5% खर्च किया गया है।

हवा को साफ करने के लिए क्या उपाय

रिपोर्ट में कहा गया है कि एक तरफ एनसीएपी के तहत पैसा पाने के लिए शहरों को हवा में पाए जाने वाले पीएम10 के निम्न स्तर को दिखाना जरूरी है, वहीं दूसरी तरफ स्वच्छ वायु सर्वेक्षण नामक कार्यक्रम में शहरों को इस आधार पर रैंक दी जाती है कि उन्होंने हवा को साफ करने के लिए क्या उपाय किए हैं, जैसे पराली जलाना बंद करना, कचरा प्रबंधन, सड़क की धूल को कम करना, लोगों को जागरूक करना और हां, पीएम10 के स्तर में सुधार भी।

एनसीएपी मूल्यांकन में कम

रिपोर्ट के अनुसार, स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में उपायों को लागू करने के लिए दिल्ली ने नौवीं रैंक हासिल की, लेकिन पीएम10 के स्तर में कोई सुधार नहीं होने के कारण यह एनसीएपी मूल्यांकन में सबसे निचले पायदान पर रहा और इसे शून्य अंक मिले। 2022-23 के मूल्यांकन के लिए श्रीनगर, गोरखपुर, दुर्गापुर, मुरादाबाद, फिरोजाबाद और बरेली जैसे 18 शहरों को सबसे अच्छे अंक मिले। वहीं, दिल्ली, चंडीगढ़, झांसी, जम्मू, नोएडा और उदयपुर जैसे 53 शहर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शहरों में शामिल रहे।

सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि हवा को साफ करने के लिए हमें अब तेजी से और बड़े पैमाने पर बदलाव करने की जरूरत है। ऐसा करने के लिए सभी क्षेत्रों में ऊर्जा के स्रोतों में बड़े बदलाव करने होंगे। इसके साथ ही वाहनों पर निर्भरता कम करने और लंबी दूरी के सामान को प्रदूषण फैलाने वाली सड़कों से हटाकर रेलवे और जलमार्गों पर लाने की जरूरत है। इसके अलावा कचरा प्रबंधन में भी सुधार जरूरी है। यह सब तभी संभव होगा जब हम इन लक्ष्यों को हासिल करने के तरीकों को मजबूत करेंगे।

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