द्रोणाचार्य कौरव व पाण्डव राजकुमारों के गुरु थे। उनके पुत्र का नाम अश्वत्थामा था जो यम, काल, महादेव व क्रोध का अंशावतार था। द्रोणाचार्य का जन्म कैसे हुआ इसका वर्णन महाभारत के आदिपर्व में मिलता है-
एक समय गंगाद्वार नामक स्थान पर महर्षि भरद्वाज रहा करते थे। वे बड़े व्रतशील व यशस्वी थे। एक बार वे यज्ञ कर रहे थे। एक दिन वे महर्षियों को साथ लेकर गंगा स्नान करने गए। वहां उन्होंने देखा कि घृताची नामक अप्सरा स्नान करके जल से निकल रही है। उसे देखकर उनके मन में काम वासना जाग उठी और उनका वीर्य स्खलित होने लगा। तब उन्होंने उस वीर्य को द्रोण नामक यज्ञपात्र में रख दिया। उसी से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ। द्रोण ने सारे वेदों का अध्ययन किया। महर्षि भरद्वाज ने पहले ही आग्नेयास्त्र की शिक्षा अग्निवेश्य को दे दी थी।
अपने गुरु भरद्वाज की आज्ञा से अग्निवेश्य ने द्रोणाचार्य को आग्नेयास्त्र की शिक्षा दी। द्रोणाचार्य का विवाह शरद्वान की पुत्री कृपी से हुआ था। कृपी के गर्भ से महाबली अश्वत्थामा का जन्म हुआ। उसने जन्म लेते ही उच्चै:श्रवा अश्व के समान गर्जना की थी इसलिए उसका नाम अश्वत्थामा था। अश्वत्थामा के जन्म से द्रोणाचार्य को बड़ा हर्ष हुआ। द्रोणाचार्य सबसे अधिक अपने पुत्र से ही स्नेह रखते थे। द्रोणाचार्य ने ही उसे धनुर्वेद की शिक्षा भी दी थी।