प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में चंडीगढ़ में दिए अपने बयान में दावा किया था कि नए आपराधिक कानूनों के तहत अब अपराधियों के लिए ‘तारीख पे तारीख’ का दौर खत्म हो चुका है और त्वरित न्याय संभव हो गया है। हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अभी इस दावे में पूरी तरह से दम नहीं है।
5 करोड़ लंबित केस
भारत में वर्तमान में 5 करोड़ से ज्यादा मामलों की सुनवाई लंबित है, और इन्हें निपटाने में बरसों का समय लग सकता है। नीति आयोग ने 2018 में एक रिपोर्ट में कहा था कि मौजूदा रफ्तार से इन मामलों को निपटाने में 324 साल लग सकते हैं।
पुराने कानूनों का असर
कानूनी विशेषज्ञ बताते हैं कि प्रधानमंत्री के दावे के अनुसार, नई न्यायिक सुधारों से पुराने लंबित मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यह मामलों की सुनवाई पुराने कानूनों के तहत होगी, जो कि त्वरित निपटारे में सक्षम नहीं हैं। इसलिए, 5 करोड़ लंबित मामलों की रफ्तार में सुधार के लिए पुराने कानूनों के प्रभाव को दूर करना आवश्यक है।
कोलकाता रेप-मर्डर केस
एक उदाहरण के तौर पर, कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में हुए रेप और मर्डर केस को लिया जा सकता है। अगस्त में दर्ज हुए इस मामले की सुनवाई नए कानूनों के तहत हो रही है, लेकिन 3 महीने बाद भी मुकदमे की सुनवाई शुरू नहीं हो पाई है।
जजों की कमी
भारत में सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, और जिला अदालतों में जजों की कमी भी लंबित मामलों की बड़ी वजह है। 10 लाख की आबादी पर ideally 50 जजों की जरूरत होती है, जबकि वर्तमान में यह संख्या 14 है। इससे मामलों के निपटारे में काफी देरी हो रही है।
न्यायपालिका का खर्च
भारत में न्यायपालिका पर खर्च का स्तर भी बहुत कम है। जीडीपी का महज 0.08% ही न्यायपालिका पर खर्च किया जाता है, जबकि विकसित देशों में यह खर्च ज्यादा होता है, जैसे अमेरिका में यह 2% है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
इस समस्या से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में निर्देश दिया कि 5 साल से पुराने लंबित मामलों को जल्दी निपटाने के लिए चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जाए। इसके साथ ही अदालतों को आदेश दिया गया कि 30 दिन के भीतर सुनवाई पूरी हो और मामले में देरी होने पर कारण बताना होगा।
निष्कर्ष:
प्राइम मिनिस्टर मोदी के ‘तारीख पे तारीख’ के दावे में सुधार की संभावना तो है, लेकिन वर्तमान स्थिति और लंबित मामलों की संख्या को देखते हुए इसका प्रभाव जल्द दिखना कठिन है। न्याय में देरी के कारण लोगों का विश्वास कम हो रहा है, और इसकी सटीक वजह है कानूनी व्यवस्था की कमी, जजों की कमी, और ब्यूरोक्रेटिक प्रक्रियाएं जो न्याय में देरी का कारण बनती हैं।