पितृ पक्ष के दौरान दाढ़ी और बाल क्यों नहीं कटवाए जाते और नाखून क्यों नहीं काटने चाहिए?

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भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का विशेष महत्व है। इनमें से एक महत्वपूर्ण समय पितृ पक्ष है, जिसे श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने के लिए कई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।

यह समय विशेष रूप से पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित होता है। पितृ पक्ष के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है, जिनमें दाढ़ी और बाल नहीं कटवाना और नाखून नहीं काटना प्रमुख हैं। इन परंपराओं के पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण हैं। आइए इस रहस्य को विस्तार से समझते हैं।

पितृ पक्ष का महत्व और धार्मिक मान्यता

हिंदू कैलेंडर के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक 16 दिनों का होता है। यह समय पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करने का माना जाता है। पितृ पक्ष के दौरान परिवार के सदस्य अपने पूर्वजों के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो। यह भी माना जाता है कि इस समय पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देने के लिए उपस्थित होती हैं।

दाढ़ी और बाल न कटवाने की मान्यता

पितृ पक्ष के दौरान दाढ़ी और बाल न कटवाने की परंपरा धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी है। इस मान्यता के अनुसार:

शोक की स्थिति: पितृ पक्ष को शोक का समय माना जाता है, क्योंकि यह पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति सम्मान दिखाने का समय होता है। यहां तक ​​कि किसी की मृत्यु के बाद भी हिंदू धर्म में शोक के दौरान दाढ़ी और बाल नहीं कटवाए जाते हैं। इसी तरह पितृ पक्ष को भी एक तरह का शोक काल माना जाता है, जिसमें व्यक्ति अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए चिंतन करता है और बाहरी साज-सज्जा से दूर रहता है।

सादगी और संयम का प्रतीक: पितृ पक्ष में सादगी को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। इस समय लोग सादा जीवन जीने की कोशिश करते हैं और बाहरी साज-सज्जा से बचते हैं। दाढ़ी और बाल न कटवाना इसी सादगी का प्रतीक है, क्योंकि यह समय अपने पूर्वजों से आंतरिक रूप से जुड़ने का होता है।

आत्मा और शरीर का संबंध: हिंदू धर्म में भी माना जाता है कि दाढ़ी और बाल आत्मा से जुड़े होते हैं। पितृ पक्ष के दौरान जब पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं, तो माना जाता है कि उनका शरीर से एक तरह का संबंध होता है। इस समय शरीर के बाल और दाढ़ी कटवाना आत्माओं के लिए अशुद्धता माना जाता है।

नाखून न काटें

पितृ पक्ष के दौरान नाखून काटना भी वर्जित है, जिसका धार्मिक और सांस्कृतिक आधार भी है:

पवित्रता और स्वच्छता का प्रतीक: नाखूनों को पवित्रता और स्वच्छता से जोड़ा जाता है। पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध जैसे धार्मिक कार्यों के दौरान पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है। नाखून काटना अशुद्धता का संकेत माना जाता है, इसलिए इस दौरान नाखून काटने से परहेज किया जाता है।

धार्मिक परंपरा: पितृ पक्ष के दौरान नाखून न काटने की परंपरा भी उसी शोक काल से जुड़ी है, जिसमें व्यक्ति बाहरी श्रृंगार या सजावट से दूर रहता है। यह व्यक्ति की आध्यात्मिक पवित्रता और संयम का प्रतीक है। शोक के दौरान हिंदू परंपरा के अनुसार शरीर के किसी भी अंग में कोई बदलाव या श्रृंगार नहीं किया जाता है और नाखून काटना भी इसी के अंतर्गत आता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

पितृ पक्ष के दौरान दाढ़ी, बाल और नाखून न काटने के पीछे कुछ वैज्ञानिक तर्क भी हो सकते हैं:

स्वास्थ्य कारण: पुराने समय में चिकित्सा सुविधाओं की कमी थी और संक्रामक रोगों का खतरा अधिक था। दाढ़ी बनाते समय और बाल या नाखून काटते समय शरीर में कट लगने से संक्रमण फैल सकता था। इसलिए इस दौरान इन कार्यों से परहेज किया जाता था ताकि किसी भी तरह के संक्रमण का खतरा न रहे।

मौसम का प्रभाव: पितृ पक्ष अक्सर मानसून के बाद और सर्दियों की शुरुआत में आता है। इस समय मौसम में बदलाव होता है और वातावरण में नमी और गंदगी अधिक होती है, जिससे शरीर में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। बाल और दाढ़ी कटवाने से त्वचा अधिक संवेदनशील हो सकती है, इसलिए इसे न काटने की परंपरा शुरू हुई होगी।

आधुनिक समाज में इसका महत्व

आज के आधुनिक समय में भी हिंदू समाज में पितृ पक्ष की इन परंपराओं का प्रमुखता से पालन किया जाता है। हालांकि, कुछ लोग इसे सिर्फ धार्मिक मान्यता के तौर पर देखते हैं, जबकि अन्य इसे सांस्कृतिक विरासत के तौर पर सम्मान देते हैं। पितृ पक्ष के दौरान दाढ़ी और बाल न कटवाने और नाखून न काटने की परंपरा आंतरिक अनुशासन और पूर्वजों के प्रति सम्मान का प्रतीक है, जिसका लोग सदियों से पालन करते आ रहे हैं।

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