रविवार को बांग्लादेश में हुई हिंसा में 93 लोगों की मौत, भारत ने अपने नागरिकों के लिए जारी की एडवाइजरी

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ढाका: बांग्लादेश में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। एक बार फिर हिंसक प्रदर्शन में कई लोगों की जान चली गई। राजधानी ढाका में मौत का मंजर जारी है। रविवार को सत्तारूढ़ अवामी लीग के समर्थकों और प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच झड़प हो गई। इस झड़प में 93 लोगों की मौत हो गई। जिनमें से 13 पुलिस अधिकारी हैं और 30 अन्य घायल हो गए। बांग्लादेश में बढ़ती हिंसा को देखते हुए भारत ने अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की है। भारत ने अपने नागरिकों को अगले आदेश तक बांग्लादेश की यात्रा न करने की सलाह दी है।

विदेश मंत्रालय की एडवाइजरी

विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश को लेकर एडवाइजरी जारी करते हुए कहा कि मौजूदा घटनाक्रम को देखते हुए भारतीय नागरिकों को अगले आदेश तक बांग्लादेश की यात्रा न करने की सख्त सलाह दी जाती है। केंद्र ने कहा कि बांग्लादेश में सभी भारतीय नागरिकों को अत्यधिक सावधानी बरतने, अपनी आवाजाही सीमित रखने और आपातकालीन फोन नंबर 8801958383679, 8801958383680, 8801937400591 के माध्यम से ढाका में भारतीय उच्चायोग के संपर्क में रहने की सलाह दी जाती है।

शेख हसीना के इस्तीफे की मांग

मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग की और आरक्षण सुधारों को लेकर हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शनों में मारे गए लोगों के लिए न्याय की मांग करते हुए नारे लगाए। असहयोग आंदोलन के पहले दिन राजधानी में साइंस लैब चौराहे पर भी प्रदर्शनकारी एकत्र हुए और सरकार विरोधी नारे लगाए।

प्रदर्शनकारियों ने आतंकवादी कहा

बांग्लादेश में हिंसा भड़कने के बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना ने रविवार को कहा कि विरोध के नाम पर तोड़फोड़ करने वाले छात्र नहीं बल्कि आतंकवादी हैं। और ऐसे तत्वों से सख्ती से निपटने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं देशवासियों से इन आतंकवादियों का सख्ती से दमन करने की अपील करता हूं।

200 से ज़्यादा लोगों की मौत

कुछ दिन पहले हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद राजधानी ढाका में फिर से हिंसा भड़क उठी है। पुलिस और छात्र प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पों में अब तक 200 से ज़्यादा लोगों की मौत के कुछ दिन बाद हिंसा भड़क उठी है। ये प्रदर्शनकारी कोटा सिस्टम को खत्म करने की मांग कर रहे हैं, जिसके तहत 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के लड़ाकों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता था।

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