सेबी की शरण में गौतम अडानी! ‘हेराफेरी’ का मामला निपटाने के लिए किया आवेदन

भारत के सबसे बड़े कारोबारी समूहों में से एक, अडानी ग्रुप, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला शेयर बाजार से जुड़ा हुआ है, और इसमें पब्लिक शेयरहोल्डिंग से जुड़े नियमों का उल्लंघन करने का आरोप है। अडानी ग्रुप की कई कंपनियों ने भारतीय बाजार नियामक, सेबी (SEBI), के पास एक आवेदन दाखिल किया है। इस आवेदन में उन कंपनियों पर लगे पब्लिक शेयरहोल्डिंग नियमों के उल्लंघन के मामले को निपटाने की कोशिश की गई है।

क्या है मामला?

यह मामला 2020 के जून और जुलाई महीने का है, जब सेबी को अडानी ग्रुप की कंपनियों से संबंधित शिकायतें मिलीं। आरोप है कि अडानी ग्रुप की कंपनियों ने प्रमोटर शेयरहोल्डिंग को सार्वजनिक शेयरहोल्डिंग के रूप में गलत तरीके से वर्गीकृत किया। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी और उनके परिवार के सदस्य, जिनमें उनके सौतेले भाई विनोद अडानी भी शामिल हैं, ने शेयरों का लाभ हासिल करने के लिए जटिल संरचनाओं का उपयोग किया।

सेबी ने इस मामले में चार कंपनियों को निशाने पर लिया है—अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी पावर, अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन और अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस। आरोप है कि इन कंपनियों ने पब्लिक शेयरहोल्डिंग को नियमों के मुताबिक सही तरीके से नहीं रखा और इसके जरिए उन्होंने करीब ₹2,500 करोड़ का गलत लाभ कमाया।

सेबी की जांच और कारण बताओ नोटिस

सेबी ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए 2020 में जांच शुरू की और 23 अक्टूबर को एक औपचारिक जांच शुरू की। जांच में 1 सितंबर 2012 से लेकर 30 सितंबर 2020 तक के लेन-देन की समीक्षा की गई। इसके बाद, 27 सितंबर 2023 को सेबी ने अडानी ग्रुप और उनके परिवार के 26 अन्य सदस्य और संस्थाओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया।

सेबी का आरोप है कि अडानी ग्रुप ने अपने प्रमोटर शेयरहोल्डिंग को सार्वजनिक के रूप में गलत तरीके से दर्शाया, जिससे निवेशकों को गुमराह किया गया। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अडानी ग्रुप की कंपनियों ने आरोपों का खंडन किया और निपटान आवेदन दाखिल किए।

निपटान आवेदन: क्या इसका मतलब दोष स्वीकार करना है?

निपटान आवेदन का मतलब यह नहीं है कि अडानी ग्रुप ने आरोपों को स्वीकार किया है। इसका उद्देश्य बस इस मामले को कानूनी प्रक्रिया के तहत सुलझाना है। यदि कंपनियां समय रहते निपटान आवेदन नहीं करतीं, तो वे अपनी कानूनी अधिकार खो सकतीं थीं। विशेषज्ञों के अनुसार, निपटान आवेदन दाखिल करना एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे हर उस कंपनी को करना पड़ता है, जिसे सेबी से कारण बताओ नोटिस प्राप्त होता है।

निपटान के प्रस्ताव में अडानी ग्रुप की कंपनियों ने एक मामूली राशि का भुगतान करने की पेशकश की है। उदाहरण के लिए, अडानी एंटरप्राइजेज के डायरेक्टर विनय प्रकाश और अंबुजा सीमेंट्स के डायरेक्टर अमित देसाई ने ₹3 लाख का निपटान प्रस्ताव पेश किया है। इसके अलावा, मॉरीशस के एफपीआई इमर्जिंग इंडिया फोकस फंड्स (EIFF) ने ₹28 लाख का निपटान प्रस्ताव सेबी के सामने रखा है।

क्या यह मामला निपट जाएगा?

यह सवाल अब उठता है कि क्या इस मामले का निपटान हो पाएगा या नहीं। सेबी ने अभी तक इस मामले में कोई निर्णय नहीं लिया है, लेकिन यह निपटान प्रक्रिया इस बात का संकेत है कि अडानी ग्रुप इस मामले को हल करने के लिए तैयार है। यह प्रक्रिया किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए एक कानूनी और वैधानिक तरीका है, जिससे दोनों पक्षों के बीच विवाद कम हो सकता है।

हालांकि, अडानी ग्रुप की कंपनियों ने इन आरोपों का खंडन किया है, लेकिन सेबी द्वारा जारी किए गए कारण बताओ नोटिस के बाद यह देखा जाएगा कि निपटान की प्रक्रिया में क्या कदम उठाए जाते हैं। इस मामले के पूरे निपटने के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि क्या अडानी ग्रुप को इस मामले में कोई दंड या जुर्माना भुगतना पड़ेगा, या यह प्रक्रिया विवाद मुक्त हो जाएगी।

निष्कर्ष

यह मामला इस बात को फिर से उजागर करता है कि भारतीय शेयर बाजार में नियमों का पालन कितना महत्वपूर्ण है। पब्लिक शेयरहोल्डिंग के नियमों का उल्लंघन न केवल निवेशकों के लिए खतरनाक हो सकता है, बल्कि इससे कंपनियों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ सकते हैं। अडानी ग्रुप ने इस मामले को हल करने के लिए निपटान प्रस्ताव दायर किया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपों को स्वीकार कर लिया गया है। इस विवाद का हल क्या होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन इसने भारतीय बाजार नियामक के अधिकार और कंपनियों की जिम्मेदारी की अहमियत को और मजबूत किया है।

क्या आपको लगता है कि अडानी ग्रुप इस विवाद से बाहर निकल पाएगा? अपने विचार नीचे कमेंट बॉक्स में साझा करें।

 

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