बिहार: बिहार के जहानाबाद स्थित बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर में भगदड़ की खबर सामने आई है। इस हादसे में 7 लोगों की जान चली गई है, जबकि 35 अन्य श्रद्धालु घायल हो गए हैं। मृतकों में 3 महिलाएं शामिल हैं। दरअसल, सावन के चौथे सोमवार को सिद्धेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी, इसी दौरान यह हादसा हुआ।
जानकारी के मुताबिक, घटना रात करीब 1 बजे की है। रिपोर्ट की मानें तो घटना की वजह आपसी मारपीट है। एक फूलवाले से लोगों की कहासुनी हो गई थी, जिसके बाद विवाद बढ़ता देख पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज किया। इसी दौरान यहां भगदड़ मच गई।
7 की मौत 35 घायल
जहानाबाद थाना प्रभारी दिवाकर कुमार विश्वकर्मा का कहना है कि मंदिर के अंदर भगदड़ मचने से कुछ लोग दब गए, जिससे 7 लोगों की मौत हो गई, जबकि 35 लोग इसमें घायल हो गए। इस हादसे पर जेडीयू के जिला अध्यक्ष दिलीप कुशवाहा ने दुख जताया है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि रविवार रात से ही मंदिर में भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी।
एनसीसी कैडेट्स के भरोसे प्रबंधन!
घटना के बाद एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि प्रशासन की लापरवाही के कारण यह हादसा हुआ। यहां सुरक्षा के लिए एनसीसी कैडेट्स तैनात थे। इन लोगों ने श्रद्धालुओं पर लाठीचार्ज कर दिया, जिससे लोग भागने लगे और इस दौरान भगदड़ मच गई, जिसमें कई लोगों की जान चली गई। यह पूरी तरह से प्रशासन की गलती है।
फूलवाले से मारपीट
एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि मंदिर के पास एक फूलवाले से मारपीट हुई थी। इस दौरान यहां लाठीचार्ज किया गया। मंदिर के अंदर पुलिस की कोई टीम नहीं थी, इस पूरी घटना के लिए प्रशासन जिम्मेदार है। अगर पुलिसकर्मी समय रहते यहां आ जाते तो हादसा टल सकता था।
यूपी के हाथरस में 100 से ज्यादा लोगों की गई जान
बता दें कि इससे पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस में भी ऐसी ही घटना सामने आई थी। भोलेबाबा का सत्संग सुनने आए करीब 100 लोगों की भगदड़ में मौत हो गई थी। यहां भी प्रशासन की लापरवाही उजागर हुई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशासन ने मौके पर उचित इंतजाम नहीं किए थे। यहां उम्मीद से कहीं ज्यादा भीड़ जमा हो गई थी। साथ ही, बाहर निकलने के लिए पर्याप्त जगह भी नहीं थी।
भीड़ को नियंत्रित करने की कोई योजना नहीं
भारत में कई ऐसे हादसे हुए हैं, जब धार्मिक कार्यक्रम के दौरान भगदड़ में लोगों की जान चली जाती है। इसके बावजूद प्रशासन के पास ऐसे आयोजनों को लेकर कोई ठोस रणनीति नहीं है। आयोजक हादसे के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं, जबकि प्रशासन आयोजकों को जिम्मेदार ठहराता है।