लखनऊ: पीएम नरेंद्र मोदी अब तक कुल दस बार लाल किले से राष्ट्र को संबोधित कर चुके हैं। इस बार पीएम मोदी ने 98 मिनट का सबसे लंबा भाषण दिया है। इस बार स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम मोदी द्वारा दिए गए भाषण ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल इस भाषण की आलोचना कर रहे हैं।
सरकार को संविधान की मंशा के मुताबिक धर्मनिरपेक्षता का पालन करना चाहिए
अब बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इसकी आलोचना की है। मायावती ने एक पोस्ट शेयर करते हुए पोस्ट में लिखा, क्या पीएम द्वारा कल 15 अगस्त को लाल किले से बाबा साहब डॉ। भीमराव अंबेडकर द्वारा सभी धर्मों के लिए समान सम्मान के सिद्धांत की संवैधानिक व्यवस्था को ‘सांप्रदायिक’ कहना सही है? सरकार को संविधान की मंशा के मुताबिक धर्मनिरपेक्षता का पालन करना चाहिए, यही सच्ची देशभक्ति और राजधर्म है।
1. पीएम द्वारा कल 15 अगस्त को लाल क़िले से बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर द्वारा सभी धर्मों का एक-समान सम्मान के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त की संवैधानिक व्यवस्था को ’कम्युनल’ कहना क्या उचित? सरकार संविधान की मंशा के हिसाब से सेक्युलरिज्म का पालन करे यही सच्ची देशभक्ति व राजधर्म।
— Mayawati (@Mayawati) August 16, 2024
मायावती ने पूछा, “अच्छे दिन कब आएंगे”
बसपा सुप्रीमो ने पीएम मोदी के भाषण की आलोचना करते हुए इंस्टाग्राम पर लिखा, “इतना ही नहीं, यह कितना सही है कि पीएम गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई और पिछड़ेपन की ज्वलंत राष्ट्रीय समस्याओं से प्रभावित 125 करोड़ लोगों में आशा की कोई नई किरण नहीं जगा पाए हैं? लोगों के ‘अच्छे दिन’ कब आएंगे?”
कांग्रेस ने पीएम मोदी के भाषण की आलोचना की
कांग्रेस पार्टी के नेता जयराम रमेश ने टिप्पणी और भाषण की आलोचना की है। उन्होंने कहा, “गैर-जैविक प्रधानमंत्री की दुर्भावना, शरारत और इतिहास को बदनाम करने की क्षमता की कोई सीमा नहीं है। आज लाल किले से इसका पूरा प्रदर्शन हुआ।
The non-biological PM's capacity for malice, mischief, and maligning of history knows no bounds. It was on full display today from the Red Fort.
To say that we have had a "communal civil code" till now is a gross insult to Dr. Ambedkar, who was the greatest champion of reforms…
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) August 15, 2024
यह कहना कि हमारे पास अभी भी ‘सांप्रदायिक नागरिक संहिता’ है, डॉ. अंबेडकर का घोर अपमान है, जो हिंदू व्यक्तिगत कानूनों में सुधारों के सबसे बड़े समर्थक थे, जो 1950 के दशक के मध्य तक एक वास्तविकता बन गए थे। इन सुधारों का आरएसएस और जनसंघ ने कड़ा विरोध किया था।