सेबी अध्यक्ष पर हिंडनबर्ग के आरोप: शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने शनिवार को दावा किया कि अडानी मनी साइफनिंग घोटाले में इस्तेमाल किए गए अस्पष्ट ऑफशोर फंड में सेबी अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और उनके पति की भी हिस्सेदारी थी। अमेरिकी फर्म द्वारा लगाए गए इस आरोप के बाद से सेबी प्रमुख माधबी बुच पर कई सवाल उठ रहे हैं।
सेबी भारतीय बाजार की नियामक संस्था है। ऐसे में इसके प्रमुख पर गंभीर आरोपों के बाद यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या सरकार या वित्त मंत्रालय कोई कार्रवाई करेगा? ऐसे कई सवालों को लेकर हमने ज़ी बिजनेस के मैनेजिंग एडिटर अनिल सिंघवी से बात की है।
शेयर बाजार पर किस तरह का असर देखने को मिल रहा है?
अनिल सिंघवी – शेयर बाजार के लिए यह बेहद गंभीर मामला है, जाहिर है बाजार के हर हिस्सेदार की इस पर नजर है। क्योंकि कल जब हिंडनबर्ग ने यह जानकारी दी कि वे कुछ बड़े खुलासे करने जा रहे हैं, तब से ही तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि अगला बम किस पर फूट सकता है। किसका नाम रिपोर्ट में आ सकता है। किस पर रिपोर्ट आ सकती है, लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि हिंडनबर्ग की नई रिपोर्ट अडानी और सेबी चेयरपर्सन के बीच कनेक्शन को लेकर आएगी।
यह सबके लिए चौंकाने वाला था। कल से ही पूरा बाजार इस बात पर चर्चा कर रहा है कि आखिर किस तरह का कनेक्शन हो सकता है, इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं, इसके क्या मायने हो सकते हैं। जाहिर है कि बाजार इस पर बहुत बारीकी से नजर रख रहा है और चूंकि सेबी खुद बाजार का सबसे बड़ा नियामक है और उस पर इस तरह के आरोप लगे हैं, इसलिए इस पर बहुत बारीकी से नजर रखी जाएगी। जाहिर है इसका असर भी पड़ेगा, अब बाजार गिरे या न गिरे यह अलग बात है। इसका असर कल अडानी ग्रुप के शेयरों पर देखने को मिल सकता है।
क्या वित्त मंत्रालय इस बारे में कोई बड़ी कार्रवाई कर सकता है?
अनिल सिंघवी- बहुत संभावनाएं हैं। जाहिर है कि जब आपके सबसे बड़े नियामक पर सवाल उठ रहे हैं, तो जांच की मांग जरूर होगी और शायद ऐसा होगा भी। अब चाहे वित्त मंत्रालय करे या पीएमओ। इसमें कोई शक नहीं है कि ऐसा होना तय है।
उन्होंने आगे कहा कि हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद सेबी चेयरपर्सन की तरफ से भी बयान आया है। इस बयान में उन्होंने कहा है कि इस रिपोर्ट में कही गई बातें बेबुनियाद हैं। लेकिन जब सेबी पर सवाल उठेंगे तो उनकी जांच होना भी स्वाभाविक है। और यह जांच होनी भी चाहिए ताकि सच्चाई सामने आए। लेकिन यह जरूर सच है कि बहुत बड़े आरोप लगाए गए हैं और जिस तरह से हिंडनबर्ग ने पिछले 18 महीनों से आरोप लगाया था कि जांच बहुत धीमी गति से चल रही है। इसे लेकर बहुत बड़े सवाल उठे हैं और लोग जानना चाहेंगे कि जो कनेक्शन दिखाने की कोशिश की गई है, क्या सही है और क्या गलत है।
सेबी चीफ के खिलाफ किस तरह की कार्रवाई की जाएगी
अनिल सिंघवी- एक बात हम सभी जानते हैं कि यहां जांच में बहुत लंबा समय लगता है, चाहे वह किसी कॉरपोरेट की जांच हो या किसी नियामक संस्था की। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि किस तरह की कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन हां, सरकार को ऐसी कार्रवाई करनी चाहिए जिससे लगे कि जांच सही दिशा में है।
इस मामले में आगे क्या हो सकता है?
अनिल सिंघवी- सेबी चीफ की ओर से जारी बयानों में लिखा है कि यह आरोप बेबुनियाद है। इसमें कोई सच्चाई नहीं है। उन्होंने यह भी कहा है कि वह पहले ही सभी दस्तावेज दे चुकी हैं और भविष्य में भी देने के लिए तैयार हैं ताकि मामले को स्पष्ट किया जा सके। मुझे लगता है कि इस दिशा में मामला आगे बढ़ेगा।
सेबी चीफ की नियुक्ति कितनी बड़ी भूमिका निभाएगी?
अनिल सिंघवी- जब जांच होगी तो सभी बिंदुओं पर चर्चा होगी और सभी कोणों से जांच भी की जाएगी। क्योंकि सभी को लगता है कि जांच इतने लंबे समय से चल रही है और कोई नतीजा नहीं निकला है। हिंडनबर्ग को भी लगता है कि शायद इसी वजह से क्लीन चिट दी गई है। ऐसे में जांच के दायरे में उनकी नियुक्ति से लेकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट में किए गए दावे तक सब कुछ शामिल है।
क्या सेबी प्रमुख का अपने पद पर बने रहना सही है?
अनिल सिंघवी- यह एक कठिन फैसला है। सेबी प्रमुख को खुद ही यह फैसला लेना होगा कि उन्हें इस पद पर बने रहकर जांच करानी चाहिए या पद छोड़कर जांच करानी चाहिए। लेकिन हां, एक बात जरूर साफ है कि इसकी सच्चाई सामने आनी चाहिए।